फांसी खाते किसान की व्यथा- संतोष शाक्य

देख भूंख से मरा है कौन
कविता हो जायेगी मौन
नहीं गावों में मरा किसान
सच में मरा है हिंदुस्तान
जाकर देख कृषक की पीर
सहज उतर आएगा नीर
हो विदर्भ या बुंदेलखंड
निर्दोष किसान पाते दंड
लोग मर रहे भूंखे प्यासे
काहे का फिर देश अखंड
नहीं मिल रही कृषक को खाद
कैसा है यह राष्ट्रवाद
पहले पड़े न इनके पाव
चले आये आ गया चुनाव
मत ही करो अब इनकी बात
बहुत बुरी नेता कि जात
देखो सायद कल कुछ बदले
जैसे तैसे काटो रात
-संतोष शाक्य

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