पिछड़ी(OBC) जातियों के साथ जातिय ऊंचनीच बहुत होता है - संतोष शाक्य


बढई, गुसाईं ब्राह्मण बनना चाहते हैं. तेली वैश्य बनना चाहते हैं. कांछी, माली, कुर्मी, अहीर, नाई, गुर्जर, मछुआ, राजभर, जाट, पाल, किसान, लोधी, वर्मा आदि क्षत्रिय बनना चाहते हैं. इससे साफ है कि यह वर्ग अभी खुद को नीचा मानते हैं और ब्राह्मण, क्षत्रिय को ऊंचा मानते हैं.
कुछ साल पहले तक यह हाल था, कि आप अहीर को अहीर कह दो तो उसको बुरा लग जाता था, उसके अंदर इतनी हीन भावना बैठी थी. यही हाल सब्जी, फल उगाने वाले माली मुराव कोइरी का था उसे माली मुराई या काछी कहो तो बुरा मान जाता था और आज भी मान जाता है. मेरे यहां कुर्मी को कुर्मी कहो तो आज भी वे कहते हैं कुर्मी नहीं, गंगवार कहा करो, इतनी हीन भावना है. बढ़ई कहता है, हमें बढ़ई मत कहो, मैथिल ब्राह्मण कहो. जो पहले ब्राह्मणों की गायों को पालकर ब्राह्मणों के दूध का इंतजाम करते थे, वे कहते हैं हमें गुसाईं नहीं ब्राह्मण कहो. तेली कहता है, हम तेली नहीं वैश्य कहो.
इससे आप इन वर्गों के मन में बैठी कुंठा और हीनता का अंदाजा लगा सकते हैं, देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यवसायों में लगे लोग अपने व्यवसायिक जाति सूचक शब्दों से खुद ही कितनी हीनता महसूस करते हैं.

इससे आप समझ सकते हैं कि इन व्यवसायिक मेहनतकश जातियों को, ब्राह्मणवाद को पैदा करने वाले निठल्लों ने किस तरह दुत्कारा होगा, जो आज भी यह लोग अपने लिये प्रयोग होने वाले अपभ्रंश-हिंदी-ब्रज शब्दों से खुद ही हीन महसूस करते हैं. इससे साफ है कि अपभ्रंश-ब्रज-हिंदी काल के शासकों ने मनुवादी-ब्राह्मणवादियों को इन वर्गों का शोषण करने की खुली छूट दे रखी थी.

इसलिये जागो ओबीसी जागो, हर संस्थान में अपनी 55% हिस्सेदारी, कब्जा करने वालों से छीन लो.

-संतोष शाक्य, लेखक

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