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labour_killing |
होने दर बदर अब न लौटूंगा
मैं कभी शहर अब न लौटूंगा
देश में अपना नहीं कोई भी
करूंगा गुजर अब न लौटूंगा
गांव में मां बाप मेरे भूखे हैं
उन्हें छोड़कर अब न लौटूंगा
मंदिर, मस्जिद सब लुटेरे हैं
धर्म की डगर अब न लौटूंगा
सरकार के अलग-अलग पैमाने हैं
यही जानकर अब न लौटूंगा
बच्चों के पैर में कर दिये छाले
मैं इस हाइवे पर अब न लौटूंगा
संसद, कोर्ट सब दलालों के हैं
नहीं लेंगे खबर अब न लौटूंगा
-संतोष शाक्य, कवि & लेखक
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