कोरोना संकट में मजदूर की व्यथा- संतोष शाक्य

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होने दर बदर अब न लौटूंगा
मैं कभी शहर अब न लौटूंगा 

देश में अपना नहीं कोई भी
करूंगा गुजर अब न लौटूंगा 

गांव में मां बाप मेरे भूखे हैं
उन्हें छोड़कर अब न लौटूंगा

मंदिर, मस्जिद सब लुटेरे हैं
धर्म की डगर अब न लौटूंगा

सरकार के अलग-अलग पैमाने हैं
यही जानकर अब न लौटूंगा

बच्चों के पैर में कर दिये छाले
मैं इस हाइवे पर अब न लौटूंगा

संसद, कोर्ट सब दलालों के हैं
नहीं लेंगे खबर अब न लौटूंगा

-संतोष शाक्य, कवि & लेखक

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