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मैं अपने घर पर था, मेरी गली से एक मुसलमान लड़का गुजर रहा था, कुछ हिंदुओं को प्रवचन दे रहा था, देखो कुछ लोग कहते हैं कि मुसलमान औरत को पर्दा नहीं पहनना चाहिए. अब खुदा ने यह हालत कर दी है कि आदमी भी चेहरे पर पर्दा पहने घूम रहे हैं.
यह बात सुनकर मुझे याद आया की एक ईरानी मौलवी ने भी कहा था कि खुदा ने चीन पर कोरोना की आफत भेजी है, क्योंकि चीन मुसलमानों पर अत्याचार करता है. बाद में मुझे पता चला कि ऐसा कहने वाले मौलवी साहब खुद ही कोरोनावायरस के कारण उसी खुदा को प्यारे हो गए और हजारों ईरानी भी कोरोना से मरे और अभी भी मर रहे हैं.
दूसरी बात मेरे एक मित्र ने मुझसे कही कि तुम कहते हो हिंदू धर्म में बहुत भेदभाव है, जातिवाद है, ऊंच-नीच है, देखो हिंदू धर्म कितना अच्छा है कि आज दुनिया नमस्ते कर रही है. उनका अभिप्राय अपने धर्म को श्रेष्ठ करने से था.
दूसरे मित्र कह रहे थे तुमने देखा ना ट्रंप भी वाइट हाउस में शांति पाठ पढ़वा रहा है, हिंदू धर्म कितना महान है.
मेरे एक और मुसलमान मित्र जो स्वयं इंजीनियर है अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट कर रहे थे की कोरोनावायरस अल्लाह से गुनाहों का तौबा करने का एक मौका है, मुसलमान को अपने गुनाहों से तौबा कर लेना चाहिए.
कितने पंडा, पुजारी, मौलवी, पादरियों ने मंत्र ,आयत दे दी कि इसे पढ़ लो फिर कभी आपको कोरोनावायरस नहीं होगा.
कोरोना काल में भारत के एक मौलवी ने तो घोषणा कर दी की मस्जिद में मरोगे तो सीधे जन्नत मिलेगी, इसलिए यह टाइम घर पर रहने का नहीं है, बल्कि मस्जिदों में अधिक से अधिक संख्या में इकट्ठे होने का है.
अयोध्या के एक महंत ने भी यह घोषणा की कि जो लोग पूजा करने मंदिर आएंगे उन्हें कुछ नहीं होगा सब लोगों को मंदिर आना चाहिए.
ऐसे ही कितने मूर्ख तर्कविहीन बातें करते हुए दिखाई दिए.
मैं सबसे पहले पर्दे की वकालत करने वाले लड़के से पूछना चाहूंगा, कि अगर पर्दा इतना ही अच्छा है तो तुम खुद 24 घंटे पर्दे में क्यों नहीं रहते. खुद तो तुम अपडेट होते जा रहे हो, जींस पहनते हो, अमेरिकन टी शर्ट पहनते हो, अमेरिकन कट बाल कटाते हो और वह सब करते हो जो अंग्रेज भी नहीं करते. और कोरोना काल का इस्तेमाल औरत की गुलामी को मजबूत करने के लिए करते हो. खुदा तुम्हारे पर्दे को बचाने के लिए कोरोनावायरस भेजेगा, अबे यह बताओ अगर खुदा ऐसा ही है तो वह तुमसे अलग क्या हुआ और तुम्हारा खुदा तुमसे ज्यादा हो ही नहीं सकता.
मैं अपने दूसरे मित्र से कहना चाहूंगा जो कह रहे थे कि दुनिया नमस्ते कर रही है इसका मतलब है कि हिंदू धर्म अच्छा है. उनसे मैं कहना चाहूंगा की दुनिया नमस्ते इसलिए कर रही है क्योंकि उससे शारीरिक दूरी का पालन किया जा सकता है, न कि इसलिए कर रही है कि आपका धर्म अच्छा है. वैसे आपको बता दूं की नमस्ते का किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं है, नमस्ते प्राकृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है कि मैं आपको नमन करता हूं. इसका किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं है और हिंदू धर्म से तो कोई लेना देना नहीं है क्योंकि यह शब्द पहले भारत में इस्तेमाल होता था तब जब धर्म, मजहब या रिलीजन की कोई अवधारणा नहीं थी.
मैं अपने तीसरे मित्र, जो कह रहे थे की यह तौबा करने का वक्त है, इंसान के गुनाह के कारण खुदा ने आफत दुनिया में भेजी है. दोस्त मैं आपसे कहना चाहूंगा कि आप इंजीनियर हैं, कम से कम आप तो विज्ञान को समझते हैं. आपने वायरस, बैक्टीरिया और प्रकृति के सिद्धांतों की गहराई से पढ़ाई की है. आपसे इस मूर्खता की उम्मीद नहीं की जा सकती. आप जानते हैं की हर घटना के पीछे कोई कारण होता है, बिना कारण के कुछ भी नहीं होता. कोरोना वायरस से लोगों की मृत्यु का कारण एक वायरस है और यह वायरस किसी जीव से मनुष्य में आया है, न की किसी खुदा ने इस वायरस को इंसान को मारने के लिए भेजा है.
जहां तक गुनाह से तौबा करने की बात है तो सीरिया में ही देख लो, आपस में लड़कर, मारकर, काटकर, 10 लाख लोगों को निपटा चुके हैं.
कुछ लोग कह रहे हैं कि ट्रंप ने शांति पाठ कराया, मोदी जी ने रमजान माह में ज्यादा इबादत करने के लिए कहा.
इसलिए हमारा धर्म महान है. मैं इन गधों से कहना चाहूंगा कि तुम्हारे नेता भी तुम्हारे बीच से ही आते हैं और तुम्हारी तरह गधे हैं. तुम्हारा खुदा तुमसे ज्यादा नहीं हो सकता, न ही तुम्हारे नेता तुमसे अलग हो सकते हैं.
परन्तु ऐसा नहीं है कि सब खत्म हो गया है, मजहबी मूर्खताओं के इस अंधकारपूर्ण समय में, कोरोना काल में, कट्टरवाद, धार्मिक मूर्खताओं, अवैज्ञानिकता के इस दौर में एक उम्मीद भी जगी है.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने गौतम बुद्ध के जन्मदिन बुद्ध पूर्णिमा पर कहा कि "गौतम बुद्ध के वैज्ञानिक संदेश ही कोरोनावायरस से, धार्मिक कट्टरताओं से और धार्मिक मूर्खताओं से मुक्ति का एक मार्ग है".
-संतोष शाक्य, लेखक
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