मंदिर-मस्जिद की सच्चाई

न सुधरने की कसम खाए बैठे हैं,
लोग मंदिर-मस्जिद में आए बैठे हैं.

स्कूल मांग रहे हैं सरकारों से,
मस्जिद आलीशान बनाए बैठे हैं.

मंदिरों के बाहर तड़पते हैं भूखे,
पत्थर दूध से नहाए बैठे हैं.

दलित छू ले अपवित्र हो जाते हैं,
पुजारी जो खुद बिन नहाए बैठे हैं.

झूठे ग्रंथों को सच बताते हैं,
इतिहास को झूठा बताये बैठे हैं.

- संतोष शाक्य

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