गजल- सुकूं मिलता है बस मयखाने में - संतोष शाक्य


सुकूं मिलता है बस मयखाने में
कोई अपना नहीं जमाने में

अब वही हमसे नजर चुराता है
खो दिया खुद को जिसको पाने में

बहू ने चार दिन में उजाड़ दिया
उम्र बीती जो घर बनाने में

-संतोष शाक्य

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