शिक्षा के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहे ओबीसी, एससी, एसटी समाज के छात्रों को रोकने के लिए, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने नया तरीका निकाला है. कहा कि अगर ओबीसी, एससी, एसटी वाला ज्यादा नंबर भी लाता है, तब भी उसका चयन केवल उसके वर्ग में किया जाएगा. जबकि जबसे आरक्षण लागू हुआ है, तब से लेकर अब तक उन छात्रों को जो जनरल सीट पर क्वालीफाई करते हैं, जनरल में जगह दी जाती रही है. पहले ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग बहुत कम शिक्षित थे और बहुत कम लोग ही जनरल में क्वालीफाई कर पाते थे परंतु अब बहुत से लोग जनरल सीट पर क्वालीफाई कर रहे हैं. जिसकी वजह से संघी, भाजपाई, मनुवादी वर्ग को बहुत समस्या हो रही है. क्योंकि यह मनुवादी असमानतावादी वर्ग ओबीसी को ही अपने लिए असली खतरा मानता है. इनको डर है कहीं ओबीसी वर्ग को इनके असमानतावादी सोच का पता ना चल जाए.
कई लोगों को यह गलतफहमी भी है कि सामान्य की सीटें उन जातियों के लिए रिजर्व हैं, जिन को आरक्षण नहीं मिला है. यह पूरी तरह एक भ्रम है, सामान्य का अर्थ उन सीटों से है जिन सीटों पर कोई भी व्यक्ति चयन ले सकता है. इससे पहले कि सभी परीक्षाओं में सर्वप्रथम सामान्य वर्ग की काउंसलिंग कराई जाती थी, जिसमें सभी छात्र हिस्सा लेते थे. जिसमें बहुत से ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग के लोग अनारक्षित सीट प्राप्त कर लेते थे. सामान्य का अर्थ अनारक्षित सीटों से है जिस पर कोई भी व्यक्ति सलेक्शन ले सकता है. परंतु सरकार सामान्य को ऐसे दिखा रही है, जैसे यह सीटें उन वर्गों के लिए आरक्षित हैं या कि उन जातियों के लिए आरक्षित हैं, जो कि आरक्षण में नहीं आती. सामान्य सीटों का अर्थ सीटों से है जो सभी के लिए खुली हैं जिनमें आरक्षित और अनारक्षित सभी लोग अपनी काउंसलिंग करा सकते हैं.
यदि ओबीसी, एससी, एसटी वर्गों को सामान्य या अनारक्षित सीटों पर काउंसलिंग कराने से या चयन लेने से रोका जाता है, तो यह तो उल्टा आरक्षण उन मुट्ठी भर अनारक्षित जातियों के लोगों के लिए हो जाएगा जिनकी जनसंख्या 10 से 15% है.
अब आप समझ सकते हैं की सरकार जो कि आरएसएस के द्वारा नियंत्रित की जा रही है किस तरह संविधान को तोड़ मरोड़ रही है. किस तरह कानूनों को तोड़कर उनकी नई व्याख्या कर रही है. किस तरह सामान्य वर्ग को इस तरह से प्रदर्शित कर रही है जैसे कि सामान्य कोई आरक्षित वर्ग है.
किस तरह से ओबीसी, एससी, एसटी वालों को इस तरह का ज्ञान देने की कोशिश कर रही है, कि आप सामान्य की सीटें नहीं ले सकते, जैसे कि सामान्य की सीटें अनारक्षित जातियों के लिए आरक्षित हैं. किस तरह से संघी मनुवादी लोग अनारक्षित सीटों को अपने लिए आरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, आपको यह सोच लेना चाहिए.
मैं यही कहना चाहूंगा कि संविधान की उल्टी पुल्टी व्याख्या आज की जा रही हैं, कल यह लोग संविधान को भी गलत बता सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था भी आरक्षण को राज्य के ऊपर छोड़ देना चाहती है और कह रही है कि वह चाहे तो लागू करें चाहे ना करें.
देश एक बड़े संक्रमण काल से गुजर रहा है जहां चंद जातियां सामान्य जोकि अनारक्षित सीट है उस पर कब्जा जमाने का प्रयास कर रही है और अनारक्षित कोटे को अपने लिए आरक्षित करना चाहती हैं.
उत्तर प्रदेश चिलम सेवा आयोग का यह प्रयास इसी क्रम में पहली शुरुआत नहीं है पहले भी बहुत जगह से ओबीसी, एससी, एसटी की सीटें उड़ाई जा चुकी हैं. आपको बताया जाता है कि यह हिंदुओं की सरकार है यह हिंदुओं की नहीं संघियों की सरकार है इसका एक ही एजेंडा है यह किस प्रकार मनुस्मृति का शासन लाया जाए. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इस समय उत्तर प्रदेश मनुवंशी सेवा आयोग के रूप में काम कर रहा है. अब ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग को जाग जाना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए.
अब आपको और ओबीसी के नेताओं से भी सवाल पूछना चाहिए, जिनके कहने पर आपने संघियों को वोट दिया था. केशव प्रसाद मौर्य, स्वामी प्रसाद मौर्य, स्वतंत्र देव सिंह, धर्म सिंह सैनी इन सभी गुलामों के मुंह पूरी तरह से बंद हैं. इनसे सवाल पूछिए.
आखरी सवाल खुद से जरूर पूछिए की क्या आपका दिमाग खुला हुआ है, जवाब नहीं में आएगा और मैं कहूंगा कि अपना दिमाग खोल दीजिए.
नोट- मेरा यह लेख किसी भी जाति के विरोध में नहीं है, इसका किसी जाति धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि संविधान की रक्षा के पक्ष में है.
जय महात्मा फुले, जय साहू जी महाराज, जय जगदेव प्रसाद, जय भीम, जय भारत
-संतोष शाक्य
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